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राजस्थान: हनुमानगढ़ में बीटी कपास 1.8 लाख हेक्टेयर में बोई, पिछले साल से 61 हजार हेक्टेयर अधिक

2025-08-18 11:41:26
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राजस्थान : 1.80 लाख हेक्टे. में बीटी कपास की बिजाई, गत वर्ष से 61 हजार हेक्टेयर ज्यादा, अगले 60 दिन महत्वपूर्ण

हनुमानगढ़ जिले में इस बार बीटी कपास की 1 लाख 80 हजार हेक्टेयर में बिजाई हुई है। बुवाई का यह आंकड़ा गत वर्ष से लगभग 61 हजार हेक्टेयर ज्यादा है। पिछले साल 1 लाख 19 हजार हेक्टेयर में ही बिजाई हुई थी। बारिश के बाद फसल में रोग का प्रकोप.

फसल को गुलाबी सुंडी सहित अन्य रोग के प्रकोप से बचाने के लिए कृषि विभाग के अधिकारी और पर्यवेक्षक सर्वे कर रहे हैं। फील्ड स्टाफ को नियमित रूप से खेतों का सर्वेक्षण कर रिपोर्ट सबमिट करने के निर्देश दिए गए हैं। हालांकि अभी तक बड़े स्तर पर कहीं भी नुकसान की सूचना नहीं है। फिर भी कृषि विभाग के अधिकारी कृषकों को भी जागरूक कर रहे हैं। बिजाई क्षेत्र बढ़ने के साथ ही अगर उत्पादन अच्छा होगा तो जिले की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी। किसानों को भी लाभ होगा। विभाग के अधिकारियों के अनुसार गुलाबी सुंडी एक बार टिंडे में चले जाने पर इसका प्रबंधन किया जाना लगभग असंभव हो जाता है। ऐसे में आगामी 60 दिन और सजग रहने की आवश्यकता है। किसानों से फसल की लगातार मॉनिटरिंग करने और रोग का प्रकोप दिखने पर विभाग की सिफारिश अनुसार नियंत्रण के लिए कार्य करने की अपील की गई है। विभागीय अधिकारियों के अनुसार वर्तमान में कीटों का प्रकोप हानि स्तर से नीचे है।

खरीफ सीजन की बीटी कपास मुख्य फसल है। इसको नकद फसल में भी शामिल किया गया है। किसानों को सबसे ज्यादा आय भी कपास से ही होती है। इस बार बिजाई का क्षेत्र बढ़ा है। बिजाई क्षेत्र के अनुसार ही उत्पादन में बढ़ोतरी होने से किसानों की आय बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी। क्योंकि जिले की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। उत्पादन कम होने से हर वर्ग का व्यापार प्रभावित होता है। पिछले कई वर्षों में जिले में कॉटन जिनिंग मिल की संख्या भी बढ़ी है। पर्याप्त मात्रा में उत्पादन होगा तो मिल में भी रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। इसलिए विभाग के सामने कपास को सुंडी के प्रकोप से बचाना बड़ी चुनौती है। विभागीय अधिकारियों द्वारा ग्रामीण क्षेत्र में कृषक गोष्ठियों का आयोजन किया जा रहा है। इनमें किसानों से सुंडी के प्रकोप बढ़ने से लेकर नियंत्रण तक के उपाय बताए जा रहे हैं। सबसे कारगर तरीका फेरोमैन ट्रैप ही है। किसानों से नियमित रूप से निरीक्षण करने तथा खेतों में लगाए गए फेरोमैन ट्रैप से गुलाबी सुंडी के प्रकोप की मॉनिटरिंग कर उसके आर्थिक हानि स्तर का आकलन करने की अपील की गई है।

आकलन के अनुसार यदि ट्रेप में 5 से 8 पतंगे प्रति ट्रेप लगातार तीन दिन तक आते हैं तो इस स्थिति में कृषि विभाग की सिफारिश के अनुसार नियंत्रण के प्रयास करने चाहिए। फलत अवस्था में पहुंची फसल, इसलिए पोषक तत्वों का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता: कृषि विभाग की ओर से किसानों से फसल में पोषक तत्वों का भी विशेष ध्यान रखने की अपील की जा रही है। वर्तमान में कपास फसल फलन अवस्था में है। इस अवस्था में फसल को सर्वाधिक पोषक तत्वों की आवश्यकता रहती है। जिले के कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक बरसात के कारण फसल में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि वर्षा जल के कारण फसल के जड़ क्षेत्र में पोषक तत्वों का रिसाव भूमि के निम्न स्तर में हो जाता है।

कई बार कृषकों द्वारा फसल बुवाई के समय आवश्यक पोषक तत्वों के लिए उर्वरकों की बेसल मात्रा नहीं दी जाती। इससे फसल को पोषक तत्वों की उपलब्धता नहीं हो पाती। इस कारण फूल गुड्डी पीली पड़कर गिरनी शुरू हो जाती है। इससे उत्पादकता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। किसानों से अपील की गई है कि कपास फसल में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण दिखाई देने पर या फूल-गुड्डी पीली पड़कर गिरने की स्थिति में विभागीय सिफारिश अनुसार घुलनशील उर्वरकों का खड़ी फसल पर परणीय छिड़काव किया जाए। खरीफ सीजन की बीटी कपास मुख्य फसल है। इन दिनों फसल फलन अवस्था में पहुंच चुकी है। फसल में गुलाबी सुंडी सहित अन्य रोग का प्रकोप बढ़ने की स्थिति में किस तरह नियंत्रण किया जाए इसको लेकर कृषकों को जागरूक किया जा रहा है।


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