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मंजीत कॉटन ईडी संचित राजपाल का CNBC आवाज़ इंटरव्यू

2025-09-09 17:43:42
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*मंजीत कॉटन के ईडी संचित राजपाल का CNBC आवाज़ पर इंटरव्यू*

*कपास की बुआई में कमी*

* 2024-25 में कपास की बुआई: 112.13 लाख हेक्टेयर
* 2025-26 में अनुमान: 109.17 लाख हेक्टेयर
यानी बुआई में करीब 3% की गिरावट दर्ज हुई है।

*भारत की स्थिति और पैदावार*
आज दुनिया के लगभग 50 देश कपास उगाते हैं।

* भारत क्षेत्रफल में नंबर 1 है, लेकिन उत्पादकता (yield) के मामले में हम 35वें स्थान पर आते हैं।

* भारत में औसतन 600 किलो/हेक्टेयर उत्पादन है, जबकि चीन, ब्राज़ील और अमेरिका में यह 2500–2800 किलो/हेक्टेयर तक पहुंच चुका है।

इसका बड़ा कारण है कि भारत में अब तक BT सीड्स की केवल 3-4 जेनरेशन इस्तेमाल हो रही हैं, जबकि दुनिया आज 6-7 जेनरेशन पर पहुँच चुकी है।

इसलिए पैदावार बढ़ाने के लिए नए बीज और तकनीक लाना बेहद ज़रूरी है। इससे न केवल उत्पादकता बढ़ेगी, बल्कि किसानों को भी कपास की खेती की ओर आकर्षित किया जा सकेगा।

*ग्लोबल मार्केट और एक्सपोर्ट पर असर*

* पिछले कुछ वर्षों से कपास की कीमतें दबाव में रही हैं।
* वैश्विक मांग कमजोर रही और ऊपर से टैरिफ वॉर की वजह से स्थिति और बिगड़ी।

* कभी भारत अपने उत्पादन का 20% तक एक्सपोर्ट करता था, लेकिन आज स्थिति बदलकर इम्पोर्ट पर निर्भर होने लगी है।

*कीमतों और MSP का प्रभाव*

* भारत में MSP (न्यूनतम समर्थन मूल्य) किसानों के लिए सहारा है, लेकिन इसका असर इंडस्ट्री पर पड़ता है।

* ऊँचे MSP के कारण इंडस्ट्री को महंगा कॉटन खरीदना पड़ता है, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉटन सस्ता उपलब्ध होता है।

* यही वजह है कि टेक्सटाइल एक्सपोर्ट धीमे पड़े और बांग्लादेश जैसे देशों को प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त मिली।

*कपास बनाम मैन-मेड फाइबर*

* बाजार में अब टेंसिल, बांस (Bamboo) और अन्य मैन-मेड फाइबर तेजी से विकल्प के रूप में सामने आ रहे हैं।

* मैन-मेड फाइबर कपास की तुलना में ज्यादा कंसिस्टेंट होते हैं।

* फिर भी, दुनिया का रुझान सस्टेनेबिलिटी की तरफ है और इसी वजह से कपास का महत्व बरकरार रहने की उम्मीद है।

*आगे का दृष्टिकोण*

* मौजूदा परिस्थितियों—जैसे टैरिफ, मिलों की स्थिति और वैश्विक मांग—को देखते हुए आने वाले समय में भी कपास की कीमतों पर दबाव बने रहने की संभावना है।


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