हरियाणा : बदली तस्वीर...कपास के गढ़ में किसानों का धान की खेती की ओर बढ़ा रुझान।
फतेहाबाद : कभी कपास का हब कहे जाने वाले जिले में अब धान का रकबा कपास से अधिक गया है। पिछले पांच सालों में लगातार कम हो रही कपास की पैदावार ने किसानों का इस नकदी फसल से मोह भंग कर दिया है। इससे किसान अब धान की खेती की तरफ रुख कर रहे हैं।
इस साल जिले में कपास का रकबा 65 हजार एकड़ तक कम हो गया है जबकि धान का रकबा 50 हजार एकड़ बढ़ गया है। पांच साल पहले में जिले में 1,50,000 एकड़ का रकबा है। इससे अब अनाज मंडियों की तस्वीर भी पूरी तरह से बदल गई है। जिले में कपास की खेती बड़े स्तर होने के कारण फतेहाबाद में कॉटन मिल की स्थापना की गई थी लेकिन कपास का पैदावार व रकबा घटने के कारण यह मिल बंद हो गई है। इसके स्थान पर किसानों ने धान की खेती की शुरूआत कर दी है।
कपास की पैदावार में कमी आने के कई प्रमुख कारण हैं। किसानों के अनुसार, पिछले कई वर्षों से लगातार गुलाबी सुंडी और सफेद मक्खी जैसे कीटों के प्रकोप ने कपास की फसल को भारी नुकसान पहुंचाया है। इसके अलावा, मौसम की मार कभी अत्यधिक बारिश और बाढ़, तो कभी सूखे की स्थिति ने भी कपास की खेती को घाटे का सौदा बना दिया है।
किसानों का कहना है कि रोगग्रस्त फसल पर कीटनाशकों का छिड़काव करने के बाद भी उत्पादन बहुत कम हो रहा है, जिससे उनकी लागत भी नहीं निकल पा रही है। सरकार की ओर से मुआवजा मिलने में देरी और बीमा कंपनियों के बीमा देने से मना करने के बाद किसानों का भरोसा कपास की फसल से टूट गया है। जिले की अनाज मंडियों में इस साल कुल 2,79,470 क्विंटल कपास की खरीद हो सकी है जबकि धान की खरीद 10525850 क्विंटल हुई है।
जिले में पिछले चार सालों में कपास का रकबा (एकड़ में)
साल-2021 व 22- 1.50 लाख
साल-2022 व 23-1.09 लाख
साल- 2023 व 24-79, 590
साल- 2024 व 25-90,630
साल-2025 व 26- 85,000
अमेरिकन कॉटन (नरमा) की फसल में पिछले दो सालों से गुलाबी सुंडी का प्रकोप रहा है। इससे किसानों का कपास के प्रति विश्वास कम हो गया है। वहीं कपास की खेती पर मौसम की मार सबसे अधिक रहती है। वहीं अधिक बारिश होने व सोलर पंप लगने के बाद धान की खेती का रकबा बढ़ा है।