अनुकूल मानसून की भविष्यवाणी होने पर भी किसान कपास की फसल को लेकर चिंतित हैं; कपड़ा उद्योग पर प्रभाव स्पष्ट होगा
इस साल, वैश्विक बाजारों में कपास के दामों में दबाव का अनुमान है, पर भारतीय किसानों को इसके अलावा और भी चिंताएं हैं, जिनका प्रभाव वस्त्र उद्योग पर पड़ेगा।
वैश्विक स्तर पर, कपास सीज़न 1 अगस्त को आरंभ होगी और 2024-25 के मौसम में उत्पादन में वृद्धि की उम्मीद है। ब्राजील, तुर्की, और अमेरिका में उत्तम कपास उपज से, इसकी वैश्विक आपूर्ति बढ़ेगी, जिसके बाद दामों में दबाव की संभावना है। विशेष रूप से, इस साल संयुक्त राज्य अमेरिका में कपास की उत्पादन में वृद्धि की उम्मीद है और इस देश का वैश्विक आपूर्ति में महत्वपूर्ण योगदान होगा।
भारत में कपास के किसानों के चिंता का कारण
भारत में, कपास सीज़न की शुरुआत से ही किसानों के मन में चिंता है। भारत और चीन दोनों में कपास की उत्पादन में कमी के संकेत हैं, और इन देशों की आपूर्ति की कमी के कारण वैश्विक स्थिति पर कोई असर नहीं होने की उम्मीद है, क्योंकि इसकी भरपाई के लिए अमेरिका से अतिरिक्त आपूर्ति उपलब्ध होगी।
भारतीय किसानों की दामों के बढ़ने की उम्मीद
भारत में, मंडियों में मिल रहे कपास के दाम उसके एमएसपी से अधिक हैं, लेकिन किसानों को अभी भी और अधिक दामों की उम्मीद है। कपास की आवक मंडियों में कम हो रही है और वैश्विक निर्यात बढ़ रहा है। किसानों को लगता है कि विश्व बाजार में उनके कपास को और अधिक उच्च मूल्य पर बेचा जा सकता है।
भारत में कपास के दाम कैसे रहेंगे
क्योंकि भारत में किसानों द्वारा कपास की आपूर्ति कम की जा रही है, और अमेरिका से इस फसल की भरपूर उत्पादन देखा जा रहा है, इसलिए यहां दोहरी संदेह की स्थिति है। NASS के क्रॉप प्रोग्रेस रिपोर्ट के अनुसार, 5 मई तक अमेरिका में 24% कपास की बोनी हो चुकी है। अगर पिछले साल और पिछले पांच सालों के औसत से इसकी तुलना की जाए, तो यह चार फीसदी कम है।
वास्तव में, देश में पिछले अक्टूबर से मार्च के दौरान कपास के निर्यात में 137% की वृद्धि हुई थी, जिससे इसमें 18 लाख गांठ शामिल थीं। इसके खिलाफ, पिछले साल की समान अवधि में यह 7.5 लाख गांठ थी। एक गांठ में औसतन 170 किलो कपास होती है, जो भारी निर्यात का संकेत है, जो बताता है कि भारत की कपास की मांग में वृद्धि हुई है।
भारत के वस्त्र उद्योग को इस समय चिंता है कि कहीं इस बार कपास की कमी के कारण उन्हें सप्लाई में कटौती का सामना करना पड़े। पिछले सालों में कपड़ों की कीमतों में उछाल आया है, और यदि कॉटन की सप्लाई कम होगी तो कच्चा माल की कमी के असर से टेक्सटाइल और वस्त्र उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। यहां अच्छे मॉनसून की उम्मीद के बावजूद, इस साल कपास की बोई जा रही है कम, क्योंकि अभी तक किसानों ने मार्केट को अपनी पूरी सप्लाई नहीं की है और वे उसकी ज्यादा मांग पर इंतजार कर रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप, कपास और कॉटन उत्पादन में कमी का खतरा है, जिससे पूरे सप्लाई चेन पर गड़बड़ाहट की संभावना है।
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