सीसीआई और जिनिंग मिलों के बीच समझौता न होने से कपास किसान असमंजस में
गुंटूर: भारतीय कपास निगम (सीसीआई) आगामी सीज़न में खरीद केंद्र शुरू करने के लिए जिनिंग मिलों के साथ समझौता नहीं कर पाया है। इस कारण कपास किसान गहरे असमंजस और चिंता की स्थिति में हैं।
सीसीआई ने निविदाओं के ज़रिए बोलियों को अंतिम रूप देने की समय-सीमा दो बार बढ़ा दी, लेकिन अभी तक कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका है। दूसरी ओर, जिनिंग मिल प्रबंधन निविदा शर्तों में संशोधन की मांग पर अड़ा हुआ है और उसने निविदा प्रक्रिया का बहिष्कार कर दिया है।
किसानों को आशंका है कि पीक सीज़न के दौरान कपास की कीमतें और गिर सकती हैं, इसलिए वे पहले ही स्टॉक बेचने की कोशिश कर रहे हैं। स्थिति और खराब तब हो गई जब ऑफ-सीज़न में भी दाम घटकर 6,500–7,000 रुपये प्रति क्विंटल तक आ गए। सरकार द्वारा लगभग 45 दिनों के लिए आयात शुल्क हटाने के फैसले ने भी घरेलू बाज़ार को झटका दिया है।
हालाँकि सरकार ने आगामी सीज़न के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाकर 8,110 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया है और सीसीआई को किसानों से स्टॉक ख़रीदने के निर्देश भी दिए हैं, लेकिन जिनिंग मिलों से समझौता न हो पाने के कारण खरीद प्रक्रिया अटक गई है।
सीसीआई ने शुरुआत में 1 सितंबर तक निविदाओं को अंतिम रूप देना चाहा था, लेकिन विरोध के चलते अंतिम तिथि बढ़ाकर 25 सितंबर कर दी गई। इसके बावजूद किसी भी मिल ने बोलियाँ दाख़िल नहीं कीं।
सूत्रों के अनुसार, सीसीआई ने जिनिंग मिलों की माँगें केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय तक पहुँचा दी हैं और अब मंत्रालय के जवाब का इंतज़ार किया जा रहा है। जिनिंग मिलों की मुख्य माँगें हैं—
* क्षेत्रवार बोलियाँ आमंत्रित की जाएँ,
* न्यूनतम बोली की अनिवार्यता हटाई जाए,
* सभी जिनिंग मिलों को भागीदारी का अवसर मिले,
* किसानों पर लाए जाने वाले स्टॉक की समय-सीमा न थोपी जाए।
मिलों का कहना है कि किसान अपनी सुविधानुसार स्टॉक लाएँ, जबकि सीसीआई का मानना है कि तय समय-सारणी से ही खरीदी की निगरानी और व्यवस्था संभव हो पाएगी।
एक सीसीआई अधिकारी ने कहा, “अगर किसानों को बिना समय-सारणी के स्टॉक लाने की छूट दी गई, तो खरीदी की निगरानी करना और किसानों की सही पहचान करना मुश्किल होगा।”